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Saturday, October 17, 2015

हम बोलेंगे, लब खोलेंगे

ब्राह्मणवादी ताकतों द्वारा मुसलमानों और दलितों पर और बोलने की आज़ादी पर किये जा रहे फासीवादी हमलों के खिलाफ आलोचक रविभूषण ने ये कविताएं लिखी हैं
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे
यह जोर-जुलुम
गंदी हरकत
यह मार-धाड़, गुंडागर्दी
अक्सर दी जाती जो धमकी
चुप रहने को
चुप नहीं रहेंगे, बोलेंगे
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे।

जो कहता है बेशर्मी से
लिखना बंद करो तुम सब
जो लिखने-कहने से हमको
जो बातें करने से हमको
हैं रोक रहे
वे यह जानें, यह समझें भी
हिटलर ही जब नहीं रहा
तो वे फिर कैसे रह लेंगे?
हम बोलेंगे, हां, बोलेंगे.

जो हमें डरानेवाले हैं
जो हमें झुकाने वाले हैं
जो लाज-शरम सब छोड़ चुके
वे यह जानें, यह समझें भी
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे.
हम वंशज हैं जिनके देखो
वे कौन रहे हैं, यह देखो
उनकी बानी-मानी देखो
उनका अड़ना-लड़ना देखो
इतिहास पढ़ो, जानो-समझो
उनकी सब कुर्बानी देखो
हम वंशज हैं किनके देखो
वे लड़ते आए हैं, देखो
कलमों की तुम ताकत देखो
अंग्रेजों से बदमाशों से
वे लड़ते आए हैं देखो
उनका भाईचारा देखो
दुश्मन से ललकारा देखो
हम वंशज हैं जिनके देखो

तुम वंशज हो किनके देखो
नाजी-पाजी को भी देखो
जालिम-कातिल को भी देखो
अपनी पैदाइश तो देखो
जो मार-काट के आदी हैं
तुम वंशज हो उनके, देखो
हम बोलेंगे, तुम जुल्मी हो
हम बोलेंगे, तुम झूठे हो
कहते हो कुछ, करते हो कुछ
नकली-असली के भेद सभी
हम खोलेंगे, हां! खोलेंगे
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे.

सच कहना अगर बगावत है
तो समझो हम भी बागी हैं
संसद में जो सब बैठे हैं
उनमें अपराधी, दागी हैं.
तुम नहीं कहीं से राष्ट्रभक्त
इतिहासों में तुम नहीं दर्ज
मालूम नहीं है तुम्हें फर्ज
फुसलाते हो, भरमाते हो
गर्जन-तर्जन करते रहते
फिर मौन साध कर रहते हो
हम नहीं रहे हैं कभी मौन
हां बोलेंगे, लब खोलेंगे.

आपस के भाईचारे को
संगी-साथी सब प्यारे को
जो तोड़ रहे, वे यह जानें
हर जोर-जुल्म के टक्कर में
सदियों से हम लड़ते आए
सदियों से हम मरते आए
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे.
यह चाल तुम्हारी नहीं चले
यह दाल तुम्हारी नहीं गले
यह दकियानूसी नहीं चले
यह नफरत-फितरत नहीं चले
हम भेद तुम्हारा खोलेंगे
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे.

गंदे को गंदा कहने से
झूठे को झूठा कहने से
शातिर को शातिर कहने से
कातिल को कातिल कहने से
हरदम हमको सच कहने से
तुम रोक नहीं सकते हमको
हम बोलेंगे, हां बोलेंगे.

जो हमें लड़ानेवाले हैं
जो हममें, तुममें, उन सबमें
जो मिल कर रहते आए हैं
नफरत फैलानेवाले हैं
वे ये जानें, ये समझें भी
यह सबका वतन है, सबका वतन
सदियों से हम सब एक साथ
रहते आए हैं, यह जानो!
हम नहीं अकेले हैं, जानो!
हम लड़ती फौजें हैं जानो!
हम लाख-करोड़ों हैं, जानो!
हम लाख-करोड़ों एक साथ
कल अपना मुंह जब खोलेंगे
बोलो, फिर तब क्या होगा?
मानो-जानो, समझो-बूझो
हम बोलेंगे, लब खोलेंगे.
हां बोलेंगे, लब खोलेंगे.

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