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Friday, July 26, 2013

फ़ीस वृद्धि एवं परिसर में लोकतंत्र बहाल करने की मांग को लेकर बीसीएम का पोस्टर व पर्चा :




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फीस वृद्धि वापस लो!                   परिसर में लोकतंत्र बहाल करो!!

साथियों,

      जैसा कि आप सभी जानते हैं, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन ने फीसें बढ़ाकर दोगुनी करने का निर्णय लिया है। अभी 6 महीने पहले ही विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा प्रवेश परीक्षा में हाथों-हाथ फार्म भरने की व्यवस्था को समाप्त कर सिर्फ ऑनलाइन फॉर्म भरने की व्यवस्था की गयी, जिसके चलते बड़े पैमाने पर दूर-दराज के छात्र फॉर्म भरने से वंचित रह गये। विश्वविद्यालय में ऐसे-ऐसे निजी व व्यवसायिक कोर्स चलाये जा रहे हैं जिनकी फीसें इतनी महंगी हैं कि उनमें प्रवेश ले पाना सामान्य घरों के बच्चों के लिए सम्भव नहीं है। विश्वविद्यालय के ये कुछ ऐसे निर्णय व तरीके हैं जिससे यह स्पष्ट होता है कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसी पॉलिसी बनायी जा रही है, जिससे आम गरीब मजदूर, किसान, दलित व मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों एवं दूर-दराज के छात्रों के लिए इस विश्वविद्यालय तक पहुंच पाना असम्भव हो जाये।

       शिक्षा किसी भी समाज के निर्माण के लिए सबसे पहली आवश्यक शर्त है। लेकिन नई आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद से हमारे देश के दलाल शासक वर्ग ने एक ऐसी शिक्षा नीति को जन्म दिया है जिसने शिक्षा को मुनाफाखोरी के एक उद्योग के रूप में तब्दील कर दिया है। आज हमारे देश में दोहरी शिक्षा पद्धति लागू की गयी है- अमीरों के लिए अलग एवं गरीबों के लिए अलग। जिसके तहत बड़े पैमाने पर शिक्षा का निजीकरण किया जा रहा है, निजी व विदेशी विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं। जो सरकारी कालेज व विश्वविद्यालय हैं भी वहां बहुत तेजी से फीसें बढ़ायी जा रही हैं।

       आज हमारे देश में जनता की क्या स्थिति है यह बताने की जरूरत नहीं है। एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक अस्सी करोड़ आबादी 20 रू0 प्रतिदिन भी नहीं कमा पाती है। बढ़ती महंगायी एवं घटते रोजगार की वजह से लोग बुरी तरह से त्रस्त हैं। उनका पूरे दिन का समय रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने में ही खर्च हो जाता है। आज देश के लाखों-करोड़ों छात्र-छात्राओं के समक्ष एक विकट संकट खड़ा हो चुका है। इस बढ़ती महंगाई के दौर में जब प्रतिवर्ष रूम रेंट बहुत तेज गति से बढ़ रहा है, रोजमर्रा की जरूरत की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं तब फीस दरों को अचानक दोगुनी कर देने से उन गरीब घरों के बच्चों के लिये शिक्षा प्राप्त करना बहुत कठिन हो जायेगा या यूँ कहें कि नामुमकिन हो जायेगा जो बमुश्किल से ट्यूशन पढ़ाकर, पार्ट-टाईम जॉब कर किसी तरह अपनी पढ़ाई को जारी रखे हुए हैं। आज हमारा विश्वविद्यालय प्रशासन इस कदर निरंकुश हो चुका है कि उसकी निरंकुशता से न केवल छात्र समुदाय परेशान है बल्कि शिक्षक व कर्मचारी भी त्रस्त हैं। छात्र तो दूर, बात-बात पर शिक्षकों, कर्मचारियों तक को नोटिस जारी किया जा रहा है। परिसर में पूरी तरह से लोकतन्त्र का गला घोंटा जा रहा है। विश्वविद्यालय से सम्बन्धित किसी भी निर्णय में छात्र-छात्राओं, कर्मचारियों, शिक्षकों की कोई भागीदारी नहीं है। परिसर के अन्दर सभा, गोष्ठी, जुलूस, धरना, नाटक अथवा किसी भी तरह का विरोध प्रदर्शन या कार्यक्रम आप नहीं कर सकते। दिन-रात वर्दीधारी प्रॉक्टोरियल बोर्ड की गाड़ियां परिसर में गश्त करके छात्र-छात्राओं के बीच भय का माहौल बनाये रखती हैं। हम पूछते हैं कहाँ हैं वो लोग जो जनता के हर संघर्ष को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हैं। आखिरकार वो बताएं कि उच्चतर शिक्षा के इस केन्द्र में किधर है लोकतंत्र?

      संघ बनाने का अधिकार तो अंग्रेजों के जमाने में ही जनता को मिल चुका था। लेकिन हमारे यहाँ न तो छात्र-संघ है, न शिक्षक संघ और न ही कर्मचारी संघ, आखिर क्यों? वो इसलिए कि हमारे देश की सरकारों एवं विश्वविद्यालय प्रशासन को यह डर है कि अगर विश्वविद्यालयों में मुकम्मल छात्र-संघ व लोकतंत्र बहाल कर दिया जायेगा तो इनके भ्रष्टाचार व लूट-दमन-दलाली के शासन को न केवल खतरा उत्पन्न हो जायेगा बल्कि पूरे देश में एक क्रान्तिकारी छात्र आन्दोलन तूफान की तरह उठ खड़ा होगा एवं इस शोषण व गैर बराबरी पर आधारित समाज व्यवस्था का नाश कर देगा।

साथियों,

       भगत सिंह छात्र मोर्चा आप सभी छात्र-छात्राओं, शिक्षकों व कर्मचारियों से अपील करता है कि इस फीस वृद्धि के खिलाफ एवं मुकम्मल छात्रसंघ, शिक्षक संघ व कर्मचारी संघ की बहाली के लिए तथा परिसर में लोकतंत्र के लिए छात्रों, शिक्षकों व कर्मचारियों की एक-जुटता पर आधारित एक सशक्त आन्दोलन खड़ा करने के लिए आगे आयें।

क्रान्तिकारी अभिवादन सहित-                 इंकलाब जिन्दाबाद!

                      भगत सिंह छात्र मोर्चा (बीसीएम.)
सम्पर्क सूत्र-   8960640907          

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