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Sunday, October 22, 2017

बीएचयू छात्राओं के आंदोलन की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट ।

“दशकों गुज़र जाते हैं और कुछ नहीं होता, और कभी कभी महज़ सप्ताहों में कई दशकों की घटनाएं घट जाती हैं|”                    - लेनिन
  

1.बीएचयू में छात्राओं के ऐतिहासिक आंदोलन की शुरुआत:
             21 सितंबर की शाम लाइब्रेरी से हॉस्टल लौट रही एक लड़की(छात्रा) जब BHU में मौजूद भारत कला भवन के पास से गुजर रही थी तो तीन बाइक सवार लड़कों ने उस लड़की के साथ छेड़खानी किया और कपड़ों के अंदर हाथ डाल दिया । लड़की जब चिल्लाई तो लड़कों ने पूछा कि  "रेप करवाओगी या अपने हॉस्टल जाओगी"| वहीं से दस कदम की दूरी पर बैठे सुरक्षाकर्मियों ने भी कोई मदद नहीं की | पीड़ित लड़की जब प्रॉक्टर के पास शिकायत करने पहुंचती है तो उससे पूछा जाता है कि वह 6:00 बजे के बाद हॉस्टल के बाहर क्या कर रही थी।  तुम लोग 6:00 बजे के बाद घूमोगी तो क्यों नहीं होगी छेड़खानी । पीड़िता की शिकायत को न सुनकर उल्टा उसे ही दोषी ठहरा कर  प्रॉक्टर ऑफिस से वापस भेज दिया जाता है । 
     जब पीड़ित छात्रा अपने सुरक्षाकर्मियों के द्वारा इस तरह के व्यवहार करने के बाद हॉस्टल पहुंची और अपने वार्डन से शिकायत किया तो वार्डन ने कह दिया कि "कपड़े में हाथ ही तो डाला है ऐसा क्या हो गया कि इतना परेशान हो" वह छात्रा कुछ समझ नहीं सकी की क्या किया जाए। लेकिन बात धीरे-धीरे दूसरे लड़कियों तक पहुंच गई। तब 21 सितंबर की रात को ही त्रिवेणी गर्ल्स हॉस्टल की सारी लड़कियों ने हॉस्टल के अंदर ही प्रोटेस्ट शुरू कर दिया। पर प्रशासन  और वार्डन ने इस घटना को हर बार की तरह हल्का-फुल्का समझकर रफा-दफा करने की कोशिश की। छोटे-मोटे आश्वासन (जो हर बार की तरह दिया जाता है पर पूरा नहीं किया जाता है) दिया गया । पर इस बार लड़कियों  में इतना गुस्सा था कि उन्होंने रात को ही ऐलान कर दिया था कि सुबह होते ही 6:00 बजे से BHU मुख्यद्वार लंका पर इकट्ठा होकर इस घटना पर अपना प्रतिरोध दर्ज करवाएंगे और BHU प्रशासन से कैंपस में सुरक्षित माहौल देने की मांग करेंगी । 
   22 सितंबर की सुबह 6:00 बजे त्रिवेणी की सारी लड़कियां अपने हॉस्टल से मार्च करते हुए लंका गेट पर आती हैं और वहीं बैठ कर इस आंदोलन की शुरुआत करती हैं । छात्राओं की मांग थी कि उन्हें कैंपस में सुरक्षित माहौल प्रदान किया जाए स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था की जाए लेकिन लड़कियों की यह मांग मानना तो दूर प्रशासन व VC ने लड़कियों से मिलना और उन्हें आश्वस्त करना भी जरूरी नहीं समझा। समय के साथ लड़कियों का कारवां और गुस्सा  बढ़ता गया इससे गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों (MMV, नवीन ,लक्ष्मीबाई व अन्य) भी इस आंदोलन में हजारों की संख्या में आने लगी । 22 की सुबह से 23 सितंबर की रात (जब तक लाठी चार्ज नहीं हुआ ) वह सभी गेट पर बैठकर धरना देती रही। इस आंदोलन में छात्रों की भी काफी अच्छी भागीदारी रही । पूरा आंदोलन छात्र बनाम प्रशासन था । यह आंदोलन कैंपस में वर्षों से छात्राओं के साथ छेड़खानी, भेदभाव व गुलामी की चली आ रही परंपरा के खिलाफ एक खूबसूरत विद्रोह था।

#छात्राओं की निम्नलिखित मांगे जिनको लेकर वे आंदोलित थी |
  •  छेड़खानी के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही  की जाए।
  •   परिसर के सभी अंधेरे रास्तों और चौराहों पर प्रकाश की उचित व्यवस्था की जाए।
  •  24/7 सुरक्षा गार्डों को परिसर की सुरक्षा के लिए और जिम्मेदार बनाया जाए। 
  •  परिसर के सभी प्रशासनिक कर्मचारियों एवं अध्यापकों में लैंगिक संवेदनशीलता लायी जाए।
  •  सभी छात्राओं के लिए छात्रावास कर्फ्यू टाइमिंग्स हटाई जाए।
  •  महिला छात्रावासों के अधिकारीगण तथा अन्य सहायक कर्मचारी में सामंजस्य को बढ़ावा दिया जाए।
  •  लापरवाह व गैर ज़िम्मेदार सुरक्षाकर्मियों के खिलाफ जल्द से जल्द उचित करवाई की जाए।
  •  महिला छात्रावास में खाने के व्यंजन एवं सभी आहारों  में समता हो।
  •  GSCASH(Gender Sensitisation Committee against Sexual Harassment ) की स्थापना की जाय। 
  •  महिला सुरक्षा कर्मियों की भर्ती की जाय।
  •  परिसर में प्रत्येक संकाय या संस्थान स्तर पर लैंगिक संवेदनशीलता के  प्रसार के कार्यक्रम अनिवार्य  करना।
  •  परिसर के सभी प्रवेश द्वार में CCTV कैमेरा लगाया जाय।
  •  परिसर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किया जाय और प्रॉक्टर की जवाबदेहिता तय की जाय।
  •  महिला हेल्पलाइन नम्बर परिसर में मुख्य-मुख्य जगह पर लिखा जाए। 

2. आंदोलन में एबीवीपी की दलाल व गुंडों की भूमिका का पर्दाफाश:         

  इस आंदोलन में एबीवीपी के कुछ नेताओं ने घुसकर आंदोलन को तोड़ने के लिए कई बार समझौता परस्त राजनीति करते हुए VC से संवाद की बात कह कर छात्राओं  को गुमराह करने का प्रयास किया । लेकिन बार-बार vc के नहीं आने पर लड़कियां समझ गई । और उनके सामने ही नारा लगाने लगी "VC के दलालों वापस जाओ तब उन्हें यह श्रेय लेने वाला व्यक्तिवादी बयान देकर आंदोलन से भागना पड़ा  कि "मेरे आंदोलन को दूसरे लोगों ने कब्जा कर लिया"  वह केवल सुरक्षा की ही बात करते रहे। आंदोलन में छात्राओं की आजादी व अधिकार से कोई सरोकार नहीं था । दूसरी कोशिश गुंडों को भेजकर आंदोलनकारियों से झड़प व मारपीट करना। वीसी आवास पर पत्थर चलाना । जिससे आंदोलन को हिंसात्मक करार देकर प्रशासनिक दमन किया जा सके । इसकी तीसरी कोशिश आंदोलन पर फर्जी आरोप लगाकर दुष्प्रचार किया गया कि "मालवीय जी की प्रतिमा पर कालिख पोती  जा रही है । BHU के झंडे को उतारा गया । JNU बनाने की कोशिश की जा रही है आदि” । ताकि आंदोलन का मुद्दा भटक सके। लेकिन छात्रों ने इस दुष्प्रचार का भी धैर्य के साथ बहुत ही रचनात्मक ढंग से जवाब देकर एक एक  का पर्दाफाश कर दिया । इसके बाद तो ये पूरी तरह गुप्तचर का काम करने लगे  । अंततः आंदोलन को तोड़ने के सभी उपाय विफल हो जाने पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज करवाया गया। लाठीचार्ज होने के बाद अगले दिन शाम से ABVP कैंपस के अंदर एक धरना देने का नाटक शुरू किया। जो पूरी तरह से प्रशासन प्रायोजित था जिसका  मकसद ABVP की गंदी छवि को साफ करना था। छेड़खानी के खिलाफ 2 दिन से लंका पर बैठी लड़कियों  को डंडे मार कर उठवा दिया गया । वही कैंपस के अंदर प्रशासन एबीवीपी को संरक्षण देकर धरने पर बैठने के ढोंग को बढ़ावा दे रहा था  । ABVP की पूरी कोशिश किसी न किसी तरह वीसी से मिलकर आंदोलन को खत्म  कराकर उसका श्रेय खुद लेना और वीसी की तरफ से पुरस्कार पाना भी था । जैसा कि दूसरे कैंपस से भी हम जानते हैं कि ABVP का चरित्र कैसा है। BHU में चूंकी छात्रसंघ नहीं है । अतः यहां एबीवीपी का मुख्य काम भाजपा और RSS का प्रचार करना और उसके नीतियों को सही ठहराना है। चाहे वे फैसले क्यों न छात्र विरोधी, महिला विरोधी और जनता विरोधी हो। दूसरा मुख्य काम एबीवीपी का BHU VC की दलाली करना है ।  साथ ही साथ प्रशासन और VC के साथ एबीवीपी के पदाधिकारियों का उठना बैठना रहा है । जी सी त्रिपाठी जब से VC बनकर आए हैं  तब से लम्पटों के साथ इनका काफी उठना बैठना रहा है। बीएचयू में जब भी कोई छात्र छात्राओं का लोकतांत्रिक आंदोलन होता है  तो इसे दबाने के लिए बीएचयू प्रशासन और VC कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं । उदाहरण स्वरूप लाइब्रेरी आंदोलन के समय आप कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट,छात्र संघ आंदोलन के समय हिंसात्मक मारपीट। इन हिंसा के पीछे आम छात्र ना होकर प्रशासन के द्वारा पाले गए वह लड़के होते हैं जो विश्वविद्यालय के छात्र नहीं होते हैं । यही हुआ छात्राओं के आंदोलन के साथ भी सबसे पहले इसे तोड़ने के लिए एबीवीपी व अन्य गुंडे लड़कों  ने इस आंदोलन को राष्ट्रवाद और महामना के अपमान से जोड़ना चाहा पर यह एजेंडा फेल हो गया। इस तरह हम समझ सकते हैं कि एक तरफ एबीवीपी जो रूढ़िवादी मनुस्मृति का समर्थक और महिलाओं की आजादी के खिलाफ है । वहीं दूसरी तरफ धरने पर बैठ कर पूरे छात्र-छात्राओं के समूह को गुमराह कर रहा है ।  इस दो तरफा राजनीति को  सभी छात्र-छात्राओं को समझकर एबीवीपी का पर्दाफाश करना चाहिए ।

3.RSS व VC की भूमिका:                 
         
   ऐसी घटनाएं सचेत व संगठित तौर पर परिसर में तब से और बढ़ गई हैं जब से BJP की सरकार बनी और  एंटी रोमियो जैसी महिला विरोधी, जातिवादी परियोजनाएं आने लगी। तब से परिसर में VT, मधुवन तथा अन्य जगहों पर कुंठित मानसिकता के बाइक सवार लड़को का झुंड आता है और किसी भी लड़के लड़की को साथ में बैठे देखने पर उनके साथ खुले तौर पर बदतमीजी,छेड़खानी,कमेंट्स, गाली देना व डराना-धमकाना, मारना-पीटना शुरू कर देते हैं । इसके पीछे घोर सामंती और पितृसत्तात्मक सोच रखने वाले   RSS व VC (जीसी त्रिपाठी) का ही हाथ है । तानाशाह वीसी आज तक किसी भी छात्र, कर्मचारी-शिक्षक से मिलना उचित नहीं समझा सिवाय गुंडों दलालों के । पिछले दिनों में भी छात्रों ने 24X7 लाइब्रेरी के लिए आंदोलन किया, छात्राओं ने भी भेदभाव के खिलाफ आंदोलन किया, संविदा कर्मचारियों ने स्थाई करने की मांग को लेकर आंदोलन किया | पर हमारे VC वि.वि. के छात्र-छात्राओं-कर्मचारियों की बाते सुनना तो दूर इसमें संवाद स्थापित करने की भी जहमत नहीं उठाई । इसी रूढ़िवादी सोच जिसका अनुसरण करने वाले RSS तथा अहंकारी सामंती तानाशाह VC की वजह से कैंपस में इतनी बड़ी घटना होती है । और इसी सामंती महिला विरोधी सोच की वजह से वीसी लड़कियों से मिलने नहीं जाता है । घटिया बयान देता है कि "लड़कियां अपनी अस्मिता को बाजार व सड़क पर बेच रही हैं "। यह उसी तरह की पितृसत्तात्मक सोच है कि "बाहर हल्ला मत करो घर में आओ तो बताते हैं तुमको"|  इसी अहंकारी तानाशाही रवैया की वजह से 2 दिन तक लड़कियों से मिलने व उनकी मांगों पर विचार करने के बजाए आंदोलन में सक्रिय नेतृत्वकारी व अन्य लड़कियों को चिन्हित करने व घर पर फोन कर दबाव बनाने तथा ABVP और अपने गुंडों से आंदोलन खत्म करवाने में लगा दिया । अंततः छात्र-छात्राओं पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज करवाया गया । इसलिए सभी छात्र-कर्मचारी-शिक्षक परिसर में RSS की विचारधारा व वीसी को ध्वस्त कर अपने लोकतांत्रिक मंच की मांग करें ।

4.कैंपस में आंदोलन की पृष्ठभूमि:                
           
     यह आंदोलन कोई नई घटना नहीं है। इससे पहले भी लगातार वर्षों से  कैम्पस में छिटपुट आंदोलन विभिन्न मांगों को लेकर होते रहे हैं । इससे पहले भी छात्राओं ने छेड़खानी के खिलाफ पूर्व  VC लालजी सिंह के कार्यकाल में आंदोलन किया था । बाद में छात्राओं के साथ सुविधाओं में भेदभाव राजनीतिक गतिविधियों में भाग न लेने के एफिडेविट, 10:00 बजे के बाद फोन नहीं करने देने के खिलाफ आंदोलन चला। इसके अलावा परिसर में ढेर सारे आंदोलन हुए हैं। छात्रसंघ बहाली आंदोलन, कर्मचारी आंदोलन, दलित छात्रों और प्रोफेसरों के साथ भेदभाव का आंदोलन, 24x7 लाइब्रेरी आंदोलन, इसके अलावा विभिन्न मांगों के लिए आंदोलन आदि । छात्र-छात्राओं के मुद्दे और  समस्याओं को बीएचयू प्रशासन व VC द्वारा लगातार अनदेखी करने पर छात्र-छात्राओं का गुस्सा आपे से बाहर हो गया ।  जिसकी परिणीति छात्राओं के आंदोलन के व्यापक रूप में व्यक्त हुआ।

5.आंदोलन को भटकाने के लिए प्रायोजित दुष्प्रचार:                  
     
  बीएचयू कुलपति का पहला बयान आया कि परिसर में राष्ट्रवाद को खत्म नहीं होने देंगे । सबसे बड़े राष्ट्रविरोधी तो हमारे कुलपति ही है । जो अपने सामंती रवैये से महिलाओं के आधे राष्ट्र को गुलाम बनाकर रखना चाहते है और पुरुषों-महिलाओं में भेदभाव करते है । इसलिए यह आंदोलन वास्तव में राष्ट्र को तोड़ने वाले RSS व राष्ट्रविरोधी VC व सामंती प्रशासन के खिलाफ सच्चे राष्ट्रवादी छात्र-छात्राओं का आंदोलन था । जो महिलाओं की सुरक्षा व आजादी की मांग कर  राष्ट्र को मुकम्मल मजबूती प्रदान कर रहे थे । दूसरा BHU को JNU बनाने का आरोप | हम बताना चाहते की यहाँ भी छात्र-छात्राओं की  एक क्रांतिकारी परंपरा राजेंद्र लाहिड़ी से लेकर गोरख पांडे तक की रही है । और यहां के छात्र लगातार पितृसत्ता, सामंतवाद को जमीनी तौर पर जुझारू तरीके से टक्कर दे रहे हैं । सिर्फ लफ्फाजी नहीं करते । इसलिए पंजाब विश्वविद्यालय व BHU का संघर्षशील आंदोलन ही सभी विश्वविद्यालयों के लिए मॉडल है ।  मालवीय जी की प्रतिमा पर कालिख पोतने जैसी सफेद झूठ को तो मीडिया व छात्रों ने तत्काल वहां पहुंचकर पर्दाफाश कर दिया की ऐसी घटना हुई ही नहीं है | यह कहना कि राजनीति हो रही है राजनीति नहीं होनी चाहिए अपने आप में राजनीतिक कथन है। परिसर में छात्राओं के साथ छेड़खानी, उन्हें दोयम दर्जे का समझना, लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करना एक खास राजनीति के तहत ही वर्षों से किया जा रहा है । वह राजनीति RSS, BJP, कांग्रेस व सभी संसदीय पार्टियों की महिला-दलित-छात्र-अल्पसंख्यक व लोकतंत्र विरोधी राजनीति है । जो पितृसत्ता सामंतवाद पूंजीवाद को संरक्षण देती है । इसलिए छात्र-छात्राओं का संघर्ष भी स्वतः जनवादी राजनीति का ही प्रतिनिधित्व करती है । आंदोलन में हिंसा का भी दुष्प्रचार किया गया | वर्षों से छात्राओं की आधी आबादी को दोयम दर्जे का मानकर व्यापक हिंसा की जाती रही हैं । लोकतांत्रिक तरीके से इसके खिलाफ आवाज उठाने पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया जाता है । क्या यह हिंसा नहीं है ? जिसे यह व्यवस्था खुद करती और करवाती है | साथ ही साथ इसे न्यायसंगत भी कहता है । इस हिंसा के विरोध में छात्राओं के द्वारा  पत्थर फेंककर किया गया प्रतिरोध हिंसा ही नहीं बल्कि इतिहास में दर्ज सभी विद्रोह, शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ जायज है । जबकि पेट्रोल बम, पत्थर, लाठी, रबर की गोली, आंसू गैस से प्रॉक्टर व पुलिस ने हिंसा की । इसके लिए उन पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए । इन सब के चरित्र का पर्दाफाश करने के लिए छात्राएं बधाई की पात्र हैं । अतः प्रशासन को छात्राओं की मांगों पर ही घेरना है जिसका इनके पास कोई जवाब नहीं है ।

6.छात्र-छात्राओं पर बर्बर लाठीचार्ज देश और कैम्पसों में बढ़ रहे फासीवादी हमले की ही एक कड़ी है |

     मात्र तीन दिनों में छात्राओं द्वारा किये गए आंदोलन ने सामंती पितृसत्तात्मक व्यवस्था के हिमायती आरएसएस जैसी शक्तियों को हिला कर रख दिया | यह आंदोलन इतना व्यापक और असरदार था की प्रधानमंत्री मोदी को भी अपने संसदीय क्षेत्र में रास्ता बदलना पड़ा  । |
  इसके बाद कुलपति व प्रशासन तथा उनके पाले गुंडे-चमचे मोदी भक्ति से खाली हुए तो सारा फ्रस्टेशन छात्र-छात्राओं पर बर्बर लाठीचार्ज कर निकाला गया । यही नहीं गोलियां चलाई गयी, पेट्रोल बम फेंके, पत्थर चलाएं,आंसू गैस के गोले दागे गए । इसी तरह के फासीवादी हमलें कोई नई चीज नहीं है। इससे पहले भी पंजाब विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि का विरोध कर रहे छात्र-छात्राओं पर लाठी, गोली, आंसू गैस के गोले दागे गए । 60 छात्रों पर गलत तरीके से देशद्रोह का फर्जी मुकदमा लगाया गया । बीएचयू में कार्यरत बीसीएम व एसएफसी द्वारा सहारनपुर मामले को लेकर "योगी गो बैक  का नारा देने पर उन्हें गिरफ्तार कर बर्बर तरीके से पीटा गया । गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा छात्रसंघ की मांग करने पर उन पर लाठी चार्ज करवाया गया तथा चार लड़कियों पर भी जान से मारने के प्रयास का फर्जी मुकदमा लगाया गया। देश में भी चाहे वह गौरी लंकेश की हत्या हो मुस्लिम दलितों को पीट-पीट कर मार देना हो या आदिवासियों पर संगठित सेना द्वारा ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाया जाना हो | BHU की यह घटना भी उसी की एक कड़ी मात्र है । लेकिन बीएचयू की छात्राओं ने भी अपने जुझारू संघर्षों से यह बता दिया कि ऐसी फासीवादी शक्तियों को वे चुपचाप सहन नहीं करेंगी बल्कि उनका डटकर मुकाबला करेंगी और अपना अधिकार ले कर रहेंगी |

7.ज्वाइंट एक्शन कमेटी के भ्रम का पर्दाफाश:                       
     पूरे आंदोलन के बाद जॉइंट एक्शन कमेटी का एक भ्रम फैलाया गया कि परिसर में सभी संगठनों का यह साझा मोर्चा है और आंदोलन में इनकी मुख्य  भूमिका है । आंदोलनों को क्रांतिकारी दिशा देने के बजाय अवसरवादी तरीके से ग्लैमराइज करने का प्रयास किया । जिस से छात्रों में निराशा की भी संभावना बन रही थी । इस भ्रम के बारे में कानून की छात्रा अनीता ने स्त्रीकाल वेबसाइट पर अपने लेख में इशारा भी किया था । यह संगठन एनएसयूआई, व अन्य व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा वाले लोगों से मिलकर बना है । इसमें भी BCM,समता SFC व SC ST OBC कमेटी जैसे संगठन नहीं है । यह प्रायोजित तौर पर बीजेपी का विकल्प कांग्रेस घोषित करने जैसा है । विचारधारा व जनता से ऊपर उठे हुए कुछ महत्वाकांक्षी लोग आंदोलन में सक्रिय रहे । आम छात्रों ने इस भ्रम को भी समझने में देर नहीं की ।

8. आंदोलन को व्यापक समर्थन:

       जैसे-जैसे आंदोलन गति पकड़ता गया वैसे-वैसे देशभर के एक्टिविस्टोंऔर बुद्धिजीवियों का समर्थन बढ़ता गया।  आदिवासियों के बीच काम करने वाली सोनी सोरी,असिस्टेंट प्रोफेसर अनुज लुगुन,गाँधीवादी एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार आदि का समर्थन मिलने लगा।  बीएचयू के भूतपूर्व प्राध्यापक चौथीराम यादव, बलराज पांडेय समेत शहर के तमाम नागरिक समाज के लोगों ने इस आंदोलन के पक्ष में  सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन किया। इसके अलावा  देशभर के कैम्पसों के छात्रों ने भी विभिन्न शहरों में समर्थन में प्रदर्शन किये। कहीं-कहीं तो छात्रों ने  कक्षा बहिष्कार कर बीएचयू की छात्राओं के आंदोलन का समर्थन किया । जिसमे मुख्य रुप से इलाहाबाद, गोरखपुर, दिल्ली ,मुंबई ,पंजाब;पटना, भागलपुर  तथा देश के लगभग सभी राज्यों में प्रदर्शन हुए। वूमेन अगेंस्ट स्टेट रिप्रेसन एंड सेक्सुअल वायलेंस(wss),साइंस एंड टेक्नोलॉजी के छात्र संगठनों की संयुक्त समिति(COSTISA),आल इंडिया कमिटी ऑफ स्टूडेंट्स स्ट्रगल (AICSS) तथा अन्य संगठनों ने लाठीचार्ज के विरोध में व आंदोलन के समर्थन में बयान जारी किया | मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल व तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने  इस घटना के बाद बीएचयू का दौरा किया और विभिन्न जगहों पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की।

9.बुद्धिजीवियों व शिक्षकों की चुप्पी तथा उनसे छात्र-छात्राओं की अपील:

    एक तरफ तो इस आन्दोलन ने बी.एच.यू. को झकझोर कर रख दिया | जिसका असर देशव्यापी है | लेकिन BHU के शिक्षकों की चुप्पी हैरान करने वाली है| ज्यादातर शिक्षक ना तो समर्थन में रहे ना विरोध में | एक दो लोगों ने ही सही स्टैन्ड लिया तथा समर्थन किया | आन्दोलन के समर्थन में खुलकर सड़कों पर उतरने वालों में मुख्य रूप से चौथीराम यादव,बलिराज पाण्डेय,स्मिता,सुनिल यादव व अन्य शहर के नागरिक सम्मिलित थे | नौकरी कर रहे लोग अपनी लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर सके | जबकि अपने आपको प्रगतिशील बताने में पीछे नही रहते | उनके वक्तव्यों में लोर्का,पाश,ब्रेख्त व नेरुदा की बाते होती है, लेकिन व्यवहार में वही दकियानूस मूल्य होता है | कुछ डाक्टरों ने छात्राओं के आंदोलन के विरोध में प्रायोजित तौर पर मोमबत्ती मार्च निकाला । जिसमें डा० ओपी उपाध्याय खुद छेड़खानी व बलात्कार के आरोप से घिरे हुए है | इसलिए छात्राओं की अपील है कि हमारे शिक्षक व मागदर्शक हमारा समर्थन करें ।

10. विपक्ष की अवसरवादी राजनीति:

         इस आंदोलन का प्रभाव तथाकथित विपक्षी दलों पर भी पड़ा। जो अभी तक सो रहे थे। नोटबन्दी,जीएसटी, किसानों क आत्महत्या ,गोरखपुर में 70 बच्चों की मौत पर विपक्ष को जितना बड़ा आंदोलन खड़ा करना चाहिए था नही किया। स्पष्ट हो जाता है कि इन नीतियों से इनका कोई मतभेद नही है। बीएचयू में हुए आंदोलन को समर्थन देने लगभग  सभी पार्टियां पहुची। सभी के सभी विपक्षी पार्टियां छात्रों की मांगे और लाठीचार्ज के दोषियों पर करवाई की मांग के बजाय दो पार्टियों के बीच संघर्ष खड़ा कर इसको भुनाने में लग गई। इससे साफ पता चलता है कि इनके पास अपना कोई एजेंडा नहीं बचा है। सिवाय अवसरवादी राजनीति के । ये सारी पार्टियां छात्र विरोधी नीतियों का विरोध करेंगी इसकी उम्मीद करना ही मूर्खता होगी । आज बीएचयू की छात्राओं के द्वारा क्रांतिकारी संघर्ष यही दिखता है कि आज मजदूरों-किसानों आदि के साथ साथ छात्र ही असली विपक्ष है । जो इस शोषणकारी व्यवस्था का विकल्प भी देंगे |

11.आंदोलन का प्रभाव:

          इस आंदोलन का प्रभाव इतना व्यापक रहा कि जिला प्रशासन ने पूरे बनारस के सभी विश्वविद्यालय, डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज को १ हफ्ते के लिए बंद करवा दिया । ताकि इस आंदोलन के समर्थन में कहीं और आंदोलन शुरू न हो । देश के लगभग हर शहर और हर विश्वविद्यालय में आंदोलन के दमन और छात्राओं पर लाठीचार्ज के खिलाफ प्रदर्शन हुए और आज भी हो रहे हैं । इसी आंदोलन के प्रभाव में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रशासन ने एक तात्कालिक मीटिंग बुलाई । जिसमें यह तय किया गया कि  किसी भी छात्रा के साथ छेड़खानी होने पर छेड़खानी करने वाले छात्र पर तुरंत कार्रवाई करते हुए निष्कासित किया जाएगा जांच बाद में होगी। खुद BHU में गर्ल्स हॉस्टल के आसपास लाइट और सीसीटीवी  कैमरे का तत्काल प्रबंध कर दिया गया। सभी सुरक्षाकर्मियों के पुलिस वर्दी को बदलकर गार्ड का ड्रेस उपलब्ध कराया जा रहा है ।
चीफ प्रॉक्टर को बदल कर 100 वर्षों में पहली बार  एक महिला चीफ प्राक्टर को नियुक्त किया गया । एमएचआरडी द्वारा कुलपति को छुट्टी पर भेजना पड़ा। फिर भी अभी ढेर सारी मुख्य मांगे नही मानी गयी है। विभिन्न अखबारों में तथा शिक्षाविदों के बीच यह बहस चल रही है कि एक विश्वविद्यालय के मानक क्या होने चाहिए ?

12.एक आदर्श आंदोलन व छात्राओं की क्रांतिकारी भूमिका:

        यह आंदोलन अपने आप में एक नए तरह का आंदोलन सिद्ध हुआ । क्योंकि जब छात्र के साथ छात्राओं पर भी लाठीचार्ज हुआ तो छात्राओं ने उसका डटकर मुकाबला किया । और SP की गाड़ी को MMV हॉस्टल के आगे नहीं बढ़ने दिया । वे गाड़ी के आगे सड़क पर लेट गईं । वहीं पर सारी लड़कियां पूरी बहादुरी के साथ पुलिस बलों के साथ लोहा ले रही थी । उन पर जब दोबारा लाठीचार्ज हुआ तो वे पत्थर चलाने में भी पीछे नहीं रही । इस आंदोलन ने व्यवस्था के निर्मम चरित्र का पर्दाफाश कर दिया । BHU की लड़कियों के भीतर से डर गायब कर दिया । और उनकी चेतना में यह बात बैठ गई कि  बिना लड़े कुछ नहीं मिलता । बीएचयू के इतिहास में लड़कियों का ये क्रांतिकारी कदम था तथा सभी विश्वविद्यालयों के लिए आदर्श आंदोलन ।

13. दमन व संघर्ष जारी है :

         इस आंदोलन पर बर्बर पुलिसिया दमन के बाद कई हथकंडों से लगातार दमन जारी है | पहले तो हजारों छात्रों पर एफआईआर किया गया | लेकिन छात्र शक्ति के डर से यह फासीवादी निर्णय वापस लेना पड़ा | आंदोलन में सक्रिय होकर सूचना व वैचारिक दिशा देने पर भगत सिंह छात्र मोर्चा के फेसबुक एकाउंट को बंद कर दिया गया | लगातार अपडेट दे रहे  BHU BUZZ  पर एफआईआर किया गया | सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा ट्वीट कर बीएचयू स्टूडेंट्स फॉर चेंज (SFC) को लेफ्ट का पागल संगठन तथा बीएचयू आंदोलन के पीछे इसका हाथ बताया गया | क्राइम ब्रांच की एक कमिटी बनाकर छात्रों को फर्जी मुकदमें की नोटिस भेजी जा रही है | जबकि एक कमिटी ने बीएचयू प्रशासन को दोषी पाया | अभी भी कुलपति को बचाया जा रहा है | बहुत सी बुनियादी मांगे पूरी नहीं की जा रही है | इसलिए छात्र-छात्राएं अभी भी गुस्से में है और विभिन्न तरीकों से संघर्षरत  हैं | इसी कड़ी में भविष्य में फिर बड़े आंदोलन की संभावना है | साथ ही अन्य छात्र विरोधी नीतियों,समस्याओं व कैम्पस लोकतंत्र को लेकर भी आंदोलन की भरपूर संभावना है |

महिलाएं नहीं तो क्रांति नहीं,क्रांति नहीं तो महिला मुक्ति नहीं!
नारी मुक्ति संघर्ष ज़िंदाबाद!
पितृसत्ता को ध्वस्त करो !!
इंकलाब ज़िंदाबाद!!!

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