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Thursday, August 14, 2014

पंद्रह अगस्त पर कविआत्मा की इक कविता और महेंद्र मिहोनवीं की इक ग़ज़ल |

कविआत्मा जी की एक कविता :


         पंद्रह अगस्त 

चौक चौराहों पर पुलिस की गस्त है,
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |

सर पे टोपी तिरंगा नेताजी के हस्त है,
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |

अनहोनी आशंका से दिल बड़ा त्रस्त है, 
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |

गांवों में आज़ादी का सूरज अस्त है, 
पंद्रह अगस्त भाई पंद्रह अगस्त है |

कुछ लोग काला दिवस मना रहे ,
नकली आज़ादी समझौता परस्त है |

आधी रात अँधेरे में नकली आज़ादी मिली, 
नेहरू - एडविना प्रेम में मस्त है  |

कौन आज़ाद हुआ कौन गुलाम रहा,
बहस मुहाबसे में सारा देश व्यस्त है |

असली आज़ादी तो क्रांति द्वारा ही मिलती है, 
खोखली आज़ादी का देश अभ्यस्त है |

                                           - कविआत्मा 


जनग़ज़लकार महेंद्र मिहोनवीं जी की इक ग़ज़ल :


               आज़ादी 

ये आज़ादी इसीलिए लगती नहीं हमें,
जैसा की तुमको छूट है वैसी नहीं हमें |

कैसे कहें की हम रहते है बाग़ में,
इक पंखुड़ी भी फूल की मिलती नहीं हमें |

तुम कहते हो आसमां में किस्मत लिखी गई,
कुछ भी कहे मगर ये बात जंचती नहीं हमें |

इसकी वजह भी पूछना संगीन जुर्म है,
मेहनत के बाद भी क्यूँ रोटी नहीं हमें |

तिरे निज़ाम में कभी इंशाफ़ भी हुआ,
तारीख तो ऐसी याद आती नहीं हमें |

                            - महेंद्र मिहोनवीं



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